मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016

उपनिषद् कहते हैं कि :- प्रणव धनुष है और जीवात्मा बाण के समान है और लक्ष्य है - ब्रम्ह । प्रमाद रहित मनुष्य द्वारा यह लक्ष्य प्राप्त किये जाने योग्य है । इसलिए साधक इस लक्ष्य को वेधकर बाण की भांति उसमें तन्मय हो जाये ।