शुक्रवार, 19 जून 2015

प्रेम , भाषा की दृष्टि से देखें तो परम् शब्द से बना है प्रेम । परम् का अर्थ है जिसमें कोई दूषितता न हो अर्थात् शुद्धतम् ,और सर्वोच्च , जिसकी कोई सीमा नहीं,या जो असीम है ।जिस चक्र का यहाँ वर्णन किया है उसका संस्कृत नाम है "अनहद" अर्थात् जिसकी कोई हद न हो या कोई सीमा न हो ,जो असीम हो ,यहाँ भगवन का निवास भी है।इसीलिए श्रीमद् भगवद्गीता के अध्याय -10 के श्लोक - 20 के द्वारा भगवन ने समझाया है कि :- अहमात्मा गुडाकेश सर्भूताशयस्थित: ।अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।। अर्थात् हे अर्जुन ! मैं सभी प्राणीयों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सबका आदि, मध्य, और अंत भी मैं ही हूँ ।.......by Dr.Surendra Nath Panch Ji, on Anhad Chakra


ध्वनि और सात चक्र ================ ऊर्जा का ध्वनि रूप कभी नष्ट नहीं होता । आज भी विज्ञान कृष्ण की गीता को आकाश से मूल रूप में प्राप्त करना चाहता है । ध्वनि की तरंगे जल तरंगों की तरह वर्तुल (गोलाकार) रूप में आगे बढ़ती हैं । सूर्य की किरणें सीधी रेखा में चलती हैं, इनका मार्ग कोई भी अपारदर्शी माध्यम अवरुद्ध कर सकता है । जल तरंगें जल तक ही सिमित रहती हैं । लेकिन ध्वनि तरंगों को कोई माध्यम रोक नहीं पाता है । गर्भस्त शिशु भी ध्वनि स्पंदनों ग्रहण कर अभिमन्यु बन जाता है । प्रकृति ने शरीर को सात धातुओं में, सात चक्रों में , सप्तांग गुहाओं में श्रेणीबद्ध किया है ।ध्वनि को भी सात सुरों से अलंकृत किया है । सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड जो की ध्वनि अर्थात नाद पर ही आधारित है, सात ही लोकों में बटा हुआ है ।यथा: भु - भुव: - स्व: - मह: - जन: - तप: - सत्यम् ।शरीर के सात चक्रों की तुलना भी इन सात लोकों से की गयी है । जैसे सृष्टि और प्रकृति में संतुलन जरुरी है, उसी प्रकार शरीर तथा चक्रों में संतुलन आवश्यक है ।प्रत्येक चक्र पर वर्णमाला के वर्ण भी अभिव्यक्त होते हैं। इन वर्णों का , सात सुरों के स्पंदनों का चक्रों से विशिष्ठ सम्बन्ध होता है । दूसरी ओर प्रत्येक चक्र से शरीर के कुछ अवयव जुड़े हुए हैं । चक्र शरीर के विशेष शक्ति केंद्र हैं , अत: इनसे ही , आश्रित अवयवों की क्रियाओं का नियंत्रण होता है । अवयवों के रोगग्रस्त होने की दशा में चक्रों का संतुलन भी बिगड़ जाता है । चक्रों का सीधा सम्बन्ध हमारे आभामंडल से होता है । इसी आभामंडल से हमारा मन निर्मित होता है । आभामंडल अपने चारों ओर के वायुमंडल से ऊर्जाएं ग्रहण करता है । यहाँ से सारी ऊर्जाएं चक्रों से गुजरती हुई विभिन्न अंगों , स्नायु कोशिकाओं में वितरित होती है । मूलाधार और सहस्त्रार को छोड़कर सभी चक्र युगल रूप में होते हैं । एक भाग आगे की ओर तथा दूसरा भाग पीठ की ओर । साधारण अवस्था में सभी चक्र घड़ी की दिशा में घूमते हैं । हर चक्र की अपनी गति होती है । इसमें होने वाले स्पंदनों की आवृति ( frequency ) के अनुरूप ही चक्र का रंग होता है । चक्र का आगे वाला भाग गुण - धर्म से जुड़ा है । पृष्ठ भाग गुणों की मात्रा , स्तर और प्रचुरता से जुड़ा होता है । युगल का संगम रीढ़ केंद्र होता है । जहाँ इडा - पिंगला भी मिलती हैं । यही केंद्र अंत:स्रावी ग्रंथि (endocrine gland) से जुड़ा होता है । अनंत आकाश से तथा सूर्य से आने वाली ऊर्जाएं हमारे आभामंडल और चक्रों के समूह के माध्यम से हमारे स्थूल शरीर में प्रवेश करती है । अंत:स्रावी ग्रंथियों के नाम एवम् स्थान:- ======================== चक्र ग्रंथि स्थान --------- ----------- -------------- 7 सहस्त्रार पीनियल कपाल 6 आज्ञा पिच्युटरी (पीयुशिका) भ्रूमध्य 5 विशुद्धि थायराईड (गलग्रंथी) कंठ 4 अनाहत थायमस (बाल्य ग्रंथि) ह्रदय 3 मणिपूर पेनक्रियज (अग्नाशय) नाभि 2 स्वाधिष्ठान एड्रिनल ( जनन ग्रंथि) पेडू 1 मूलाधार गोनाड (अधिब्रक्क) रीढ़ का अंतिम छोर कार्य क्षेत्र ======= सहस्रार - ऊपरी मस्तिष्क, दाहिनी आँख, स्नायु तंत्र, शरीर का ढांचा, आत्मिक धरातल, सूक्ष्म ऊर्जा सइ सम्बन्ध, पूर्व जन्म स्मृति आदि । भ्रूमध्य - ग्रंथियों की कार्य प्रणाली, प्रतिरोध क्षमता, चेहरा तथा इन्द्रियों के कार्य, अंत:चक्षु , चुम्बकीय क्षेत्र, प्रज्ञा आदि । विशुद्धि - स्वर यंत्र , श्वसन तंत्र , अंत:श्रवण, टेलीपेथी, अंतर्मन आदि । अनाहत - रोग निरोधक क्षमता, ह्रदय, रक्त प्रवाह , दया - करुणा का केंद्र, अन्य प्राणीयों के प्रति सम्मान भाव आदि । मणिपुर - पाचन तंत्र, यकृत, तिल्ली , नाड़ी तंत्र , आंतें , बायाँ मस्तिस्क, बौद्धिक विकास आदि । स्वाधिष्ठान - प्रजनन तंत्र, गुर्दे , मूत्र , मल, विष विसर्ज्ञन, भावनात्मक धरातल, सूक्ष्म स्तर आदि । मूलाधार - विसर्जन तंत्र , रीढ़ , पैर ,प्रजनन अंग, जीवन ऊर्जा का मूल केंद्र, भय मुक्ति, शक्ति केंद्र । सातों केन्द्रों के रंग भी इन्द्रधनुष के रंगों के क्रम में होते हैं । हर रंग ध्वनि तरंगों की आवृति से बनता है । यह वैज्ञानिक तथ्य है । अत: हम ध्वनि तरंगों की आवृति नियंत्रित करके चक्र विशेष को प्रभावित कर सकते हैं । ध्वनि की अवधारणा में शब्द और भाव संगीत पर सवार होते हैं । अलग-अलग श्रेणी के शब्द जब संगीत की लय , ताल , और स्वर से मिलते हैं, तब विभिन्न चक्रों पर उनका प्रभाव भिन्न - भिन्न होता है । अस्वस्थ व्यक्ति के चक्रों का स्वरुप असंतुलित होता है । गति, आवृति, रंग, आभामंडल आदि संतुलित नहीं होते । तब संगीत की लय, भावनाओं के साथ जुड़कर संतुलन को ठीक करने का क्रम शुरू किया जाता है । कई बार रोग की स्थिति में असंतुलित चक्र सूक्ष्म शरीर से ऊर्जा खींचकर स्वस्थ होने का प्रयास करता है । रंगों की तरह संगीत के सात सुर भी सातों केन्द्रों से जुड़े होते हैं । प्रत्येक स्वर की आवृति , ताल, भी हर चक्र की अलग-अलग होती है । शब्द, भाव और ध्वनि अविनाभाव( आपस में संयुक्त ) होते हैं ।एक को बदलने पर शेष दोनों भी बदल जाते हैं । ध्वनि की एक विशेषता यह है कि ये चारों ओर फैलती जाती है । प्रत्येक व्यक्ति के शरीर से गुजरती जाती है । इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की ध्वनि भी हमारे शरीर से गुजरती रहती है । अत: हर व्यक्ति एक दूसरे को परिष्कृत करता जाता है । शब्द और ध्वनि मिलकर भावनाओं को ऊर्ध्वगामी बनाते हैं । इसी के साथ संगीत के सुरों का क्रम गहन से गहनतम होता जाता है । व्यक्ति खो जाता है । संगीत के स्पंदन और उसका गुंजन मणिपुर चक्र के माध्यम से शरीर में फैलता है । गर्भस्थ शिशु के साथ माँ का संवाद नाभि के जरिये ही बना रहता है । सातों सुरों का प्रभाव सीधा भी भिन्न-भिन्न केन्द्रों पर पड़ता है । नीचे मूलाधार पर "सा " , स्वाधिष्ठान पर " रे " , मणिपूर पर " ग " , अनाहत पर " म " , विशुद्धि पर " प " , तथा आज्ञा चक्र पर " ध " , के साथ सहस्त्रार पर " नि " का प्रभाव अलग-अलग सुर-लय के साथ पड़ता रहता है । मूलाधार शरीर की ऊर्जाओं का केंद्र है । ताल के साथ तरंगित होता है । तबला, ढोल, मृदंग जैसे संगीत पर थिरकता है । स्वाधिष्ठान भावनात्मक धरातल मूलाधार तथा मणिपुर के साथ स्पंदित होता है । लय हमेशां भावनात्मक भूमिका में कार्य करती है । अत: ऊपर अनाहत को भी प्रभावित करती है । विशुद्धि और अनाहत भीतरी सूक्ष्म शक्तियों का मार्ग खोलते हैं । आज्ञा-सहस्त्रार आत्मिक धरातल का संतुलन, शरीर-मन-बुद्धि का संतुलन , दृश्य-द्रष्टा भावों के प्रतिमान हैं । इनमें सुर-ताल-लय के साथ भावों का जुड़ना जरुरी है । विश्व भर में आज संगीत चिकित्सा की बहुत चर्चा है । संगीत चिकित्सा के अनुसार ताल शारीरिक और सुर भावनात्मक क्षेत्र को तथा लय बद्धता अंत:क्षेत्र को प्रभावित करते हैं । ध्वनि प्रत्येक चक्र की ऊर्जाओं को संतुलित करते हुए व्यक्ति को मन-वचन-शरीर से निरोग व आस्थावान बनाये रखती है।


शनिवार, 13 जून 2015

DR.VANDANA RAGHUVANSHI, REIKI TEACHER IN CHANDIGARH

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Dr. Vandana Raghuvanshi
Director Energy Healing Guidance
Surgeon, Past Life Regression & Hypnotherapist,
Neuro-Linguistic Program(NLP) Therapist
Reiki Grand Master & Pranic Healer.
Power of Subconscious Mind Trainer
Magnified healer and Teacher
Crystal Healer
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Teacher for Crystal ball gazing
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World class trainer for how to attract abundance
EFT/ ERT[Emotional release therapy ] Trainer
Medical Vedic astrologer
Writer
Chandigarh
India.
mobile..09872880634
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PRACTICE:

· >Past life regression & hypnotherapy:   Successfully doing past life regression, children’s past life        sessions,
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  physical health problems, relationship issues, spiritual advancement, guidance from    master.
> LBL (Life between Lives) session, age regression, anti natal (in womb) regression, Inner child healing, >Re-Birthing cleansing of  present physical body Aura and Chakra before regression,
 >SRT (Spirit Releasement Therapy)
. >As a spiritual healer she does healing work in Past Life Session for forgiveness and disconnection of disharmony cords, removal of negative energy from past life and SRT in past life therapy session

> NLP therapy for nail biting, bed wetting, goal setting, eating disorders and to increase confidence and NLP for sports person. 
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मंगलवार, 9 जून 2015

@ शरीर से परे भी एक विज्ञान ------------------------------------- कर्म और भाग्य के सिद्धांत की बात प्राचीन काल से की जाती रही हैं और भगवान श्री कृष्ण द्वारा इसका विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है ।भाग्य और भगवान में मजबूत आस्था रखने के कारण एवं षडदर्शन और ज्योतिष विषय का अध्ययन और अध्यापन करने के कारण यह समझने का अवसर मिला कि हर व्यक्ति , समान कौशल होने के बाबजूद विभिन्न मोर्चों पर अलग - अलग प्रदर्शन करता है । क्रकेट की भाषा में इसे " इन - फॉर्म और आउट - ऑफ़ - फॉर्म " कहा जाता है ।ज्योतिष में यह प्रदर्शन "योग,गोचर - महादशा और अन्तर्दशा " पर निर्भर करता है ।इस बात को क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के उदाहरण से समझा जा सकता है ।रातोंरात " क्रकेट के भगवान" ने जब परिस्थितियों के सामने समर्पण किया तो जिन लोगों ने उन्हें भगवन बनाया था वही उनके सबसे बड़े आलोचक हो गए । एक ज्योतिषविद होने के नाते सचिन तेंदुलकर की जन्मकुंडली का अध्ययन किया और कुछ दिलचस्प नतीजे सामने आये । उनकी जन्मकुंडली में जहाँ एक ओर सूर्य -मंगल का योग और गजकेसरी जैसा असाधारण योग है, वहीं राहु - चन्द्र का नकारात्मक योग कमजोर शुक्र के साथ है । 1990 से 1996 के दौरान उन्होंने सभी विरोधियों के छक्के छुड़ा दिए और स्वयं व् देश के लिए गौरव हासिल किया और निरंतरता बनाये हुए एक ब्रांड बन गए । उनका कमजोर समय 2002 से 2006 के पूर्व तक रहा ।इसके पश्चात् सूर्य ने इनको फिर से प्रसिद्धि दिलाई । जून 2011 से रिटायरमेंट तक राहु - चन्द्र के चलते उनका भाग्य कमजोर हो गया । जैसा कि "कार्ल मार्क्स " ने कहा है कि इंसान अपना इतिहास स्वयं बनाता है, लेकिन वः इच्छा अनुसार नहीं बना सकता , वह चुनी हुई परिस्थति के अधीन भी नही बना सकता , बल्कि विरासत में मिली, पूर्व प्रदत्त, वर्तमान परिस्थितियों के अधीन बनाता है ।......Dr.Surendra Nath Panch


सोमवार, 8 जून 2015

योगवाशिष्ठ ग्रन्थ को महारामायण के नाम से भी जाना जाता है क्यों कि इसमेें महर्षि वाशिष्ठ ने भगवान् श्री राम को जीवन विज्ञान और योग विज्ञान की शिक्षा दी है ।उसमें ये बताया है कि चिज्जड़ ग्रंथि के टूटने पर सभी चक्र जाग्रत हो जाते हैं ।चिज्जड़ यानि (चित्त + जड़) अर्थात् चेतना का जड़ से पृथकता का अनुभव होना ।यही बात योगदर्शन के विभुतिपाद में वर्णित की गयी है ।अब चेतना की जड़ता से पृथकता कैसे हो इसके लिए एक विधि है , जो लिपिबद्ध नहीं की जा सकती ।योग दर्शन की किसी भी जिज्ञासा के लिए आपका स्वागत है ।......by Dr. Surendra Nath Panch


योग निद्रा ------------------- योग निद्रा एक परम् उत्कृष्ट निद्रा है, इसका अभ्यास हो जाने से मनुष्य के त्रिदोष सम्यक अवस्था में हो जाते हैं और व्यक्ति आदर्श स्वास्थ्य एवम् सौन्दर्य से युक्त रहता हुआ अतिशय सुखी, शांत ,प्रसन्न और आनंदित रहता है । योग निद्रा के लाभ =========== 1. योग निद्रा के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनाव समाप्त हो जाते हैं । 2. एक - एक अंग की निष्क्रियता दूर होकर , उसमें नई चेतना और नई शक्ति का संचार होता है । 3. शरीर, मन और मस्तिष्क के रोग जैसे :- तनाव , मधुमेह , रक्तचाप , ह्रदय रोग तथा कमजोरी आदि से छुटकारा मिल जाता है । 4. योग निद्रा के अभ्यास से मन पर नियंत्रण होने लगता है । मन को स्थिर करके बहुत सी शक्तियां और सिद्धियाँ प्राप्त हो जातीं हैं । 5. योग निद्रा के अभ्यास से व्यक्ति में आलस्य नहीं रहता है, वह सदा सक्रिय रहता है । कार्य करने की शक्ति उसमें बराबर बनी रहती है । 6. योग निद्रा अंतर्मन में उतरने की सर्वसुलभ क्रिया है । इसके अभ्यास से व्यक्ति को निर्मलता , निश्चलता एवम् शांति प्राप्त होती है तथा मन , मष्तिष्क और स्नायु मंडल को शान्ति एवं शक्ति मिलती है । 7. इसके अभ्यास से व्यक्ति जहाँ अंतर्मन में गहरे उतर सकता है, वहीं साधना की ऊंची उड़ान भी भर सकता है और तन-मन में अद् भुद ताजगी एवं आनंद का अनुभव कर सकता है । 8. अभ्यास परिपक्व होने पर बहुत से रहस्य व्यक्ति के समक्ष उजागर होते जाते हैं । @सावधान +++++++ यह योग निद्रा पूर्णत: लेखनीबद्ध नहीं हो सकती है । ये एक अत्यंत ही प्रभावशाली योग है , इसे किसी विशेषज्ञ के निर्देशन में सीख लेना चाहिए ।।


रविवार, 7 जून 2015

Crown Chakra

क्राउन चक्र अर्थात् ब्रह्मरन्ध्र अर्थात् शून्यचक्र, शून्य का अर्थ है अनंत और अनंत का मतलब ईश्वर से है । इस प्रकार यह चक्र ईश्वरीय शक्ति से जुड़ा हुआ है । प्रत्येक जीव में यह चक्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, यदि इसे जाग्रत किया जाए तो उस निर्गुण का ज्ञान भी हो सकता है । .

मंगलवार, 2 जून 2015

हर विचार एक बीज है – Every Thought is a Seed| हमारे पास दो तरह के बीज होते है सकारात्मक विचार (Positive) एंव नकारात्मक विचार (Negative Thoughts) है, जो आगे चलकर हमारे दृष्टिकोण एंव व्यवहार रुपी पेड़ का निर्धारण करता है| हम जैसा सोचते है वैसा बन जाते है (What we think we become) इसलिए कहा जाता है कि जैसे हमारे विचार होते है वैसा ही हमारा आचरण होता है| यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रुपी जमीन में कौनसा बीज बौते है| थोड़ी सी चेतना एंव सावधानी से हम कांटेदार पेड़ को महकते फूलों के पेड़ में बदल सकते है|


The most important thing is your self respect. It does not matter what people think about you, but what you think about yourself.....Robert H. Abplanalp